क्यों
क्यों
सुबह की कुछ अंगडइयों ने,
सपने इतने देखे क्यों।
और, बिस्तर की उन सलवटों ने,
सवाल इतने पूछे क्यों।
एक सोच, एक प्रश्न,
उंगलियों पे गिनता क्यों।
मां को रोज़ देखकर,
सीसा मुझको चुभता क्यों।
पिता के जूते पहन कर,
शरम इतनी लगती क्यों।
बस एक सवाल था बचा,
कि इतना सब कुछ सोच के,
मैं आगे बढ़ रहा हूं ...... क्यों।