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Riya Jain

Tragedy

4.3  

Riya Jain

Tragedy

क्या थी मैं और क्या हो रही हूँ

क्या थी मैं और क्या हो रही हूँ

2 mins
138


क्या थी मैं और क्या हो रही हूँ

ऐसा लगता है जैसे खुद को ही खो रही हूँ

जो पूरे दिन बस बोलती ही रहती थी

जो अपनी आँखों से भी सो बातें कहती थी

अब उसे खामोश और शांत रहना ही पसंद है

जो कभी एक झरने सी बहती थी!


जिसका दिल जीतते थे मेलों के झूले

अब उसे पार्क की बेंचें पसंद आती है

जो दिन में भी परियों की कहानी बुनती थी

अब उसकी रातें भी कश्मकश में निकल जाती है


मैं वही हूँ जिसके पैर पहले देवी का रूप समझकर छूतें थे

उसी के पैर अब सबने बेड़ियों में बांधें है

लोग क्या कहेंगे के जाल में उसे कैद करके

आग के दरियें में फूकें तुमने उसके मजबूत इरादे है

कभी मेरे बोल जाने पर, कभी सब सह जाने पर

तुमने मुझे ही गलत माना है

चलो इसी बहाने मैंने समाज का ये दोगलापन पहचाना है

वो तो दरिंदा था ही जो मुझे नोच गया

पर मैंने अपने समाज को भी अपना दुश्मन माना है!


मैं जानती हूँ मेरे साथ कुछ गलत होते ही

मेरे कपड़े, मेरी हंसी, मेरी दोस्ती, और मेरा चाल ढाल ही ज़िम्मेदार हो जाएगा

लड़कों का क्या है, लड़कियों को ध्यान रखना चाहिए का नारा गूंजेगा

और वो गुन्हेगार होते हुए भी निर्दोष साबित हो जायेगा!


कितनी अजीब बात है न

मेरे कपड़ो की लम्बाई कितनी होनी चाहिए

ये मुझे घूरने वाले ही तय करते हैं हद तो तब होती है

जब बंद कमरे में जो खुद रावण है

और मंदिरों में राम जी के चहेते बनते हैं!


चलों मान लेती हूँ मेरी ही स्कर्ट छोटी थी

पर तुम्हारी नीयत का क्या?

मेरी ही दोस्ती गलत थी !

पर तुम्हारी नज़र का क्या?

मेरे ही संस्कार खराब थे !

पर तुम्हारी परवरिश का क्या?

अरे छोड़ो जनाब मैं पूरी ही गलत थी !

पर तुम्हारी इंसानियत का क्या? चलो एक बात आज साफ़ कह देती हूँ

जो किसी की बहन बेटी की इज़्ज़त नहीं कर पायी वो नज़र तुम्हारी थी

जो अपने संस्कारों को भूल गई वो नीयत तुम्हारी थी

जिसने मेरा मुँह नोच लिया वो दरिंदगी तुम्हारी थी

इन सबमे जो मेरा था तो वो थी मेरी ज़िन्दगी जो तुमने नोच दी

और ये करने की हैवानियत भी तुम्हारी थी!


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