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Ashish Gharpure

Romance

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Ashish Gharpure

Romance

क्या फ़र्क पड़ता है

क्या फ़र्क पड़ता है

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आपके सुर्ख आरिज़ों पर फिदा हैं हम

आप ख़फा हो, खुश हो या शरमाई हो 

क्या फ़र्क पड़ता है


आँखों का मिलना एक सुरूर सा दे गया

नज़र मिलाई हो, फेर ली, या झुकाई हो 

क्या फ़र्क पड़ता है


जुल्फ़ें जकड़ ही लेती हैं हर हाल में

मुझ को

लट आँखों पे हो, रुखसार पे, या लहराई हो

क्या फ़र्क पड़ता है


सिर्फ मौजू़दगी तेरी है एजाज़ सा असर

कुर्बत हो, मुहब्बत हो या शनासाई हो

क्या फ़र्क पड़ता है


 सुर्ख - लाल रंग

सुरूर - नशा

आरिज़, रुखसार - गाल

एजाज़ - जादू

शनासाई - परिचय

कुर्बत - निकटता 


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