क्या लिखूं
क्या लिखूं
तुम्हें लिख पाऊँ इतनी मेरे स्याही की औकात नहीं,जो तुम्हे पूरा बयां कर सके
.....कि तुम्हीं कहो मैं तुम्हें क्या लिखूं ?
तुम्हारी मुस्कुराहटों की कशिश लिखूं जो मुझे हंसाया करती है, या
तुम्हारी नज़रो का वो जादू लिखूं ,जो मुझ पर पड़ते ही मेरे रूहों को छू जाती है...
तुम्हारा वो चिढ़ जाना लिखूं ,या तुम्हारा वो गुस्सा लिखूं ,जिसमें तुम ये सोचते हो कि....तुम्हारी कोई बात मुझे तकलीफ न पहुँचाये...कि.
तुम्हीं कहो मैं तुम्हें क्या लिखूं ?
तुम्हारा वो बेशक़ीमती प्यार लिखूं , जो बिना माँगे मुझे मेरी हर खुशी दे देती है,या वो इकरार लिखूं जिसे तुम कह नहीं पाए थे ,और तुम्हारी मासूम सी आँखें बयाँ कर गयी थी....
तुम्हारी वो बेकरारी लिखूं ,जो मुझे ढूँढ़ते थे पल-पल हमारे विरह में या तुम्हारा वो बदहवास रोना लिखूं, जिसे तुम अपनी हँसी के पीछे छुपाते थे सबसे.....
तुम्हारी वो हमेशा की शरारतें लिखूं ,जो आज भी मुझसे छुप-छुप के किया करते हो,या तुम्हारी वो आहट लिखूं ,जिसके एहसास से आज भी मेरा दिल धड़क उठता है....कि तुम्हीं कहो मैं तुम्हें क्या लिखू
क्यूँकि ?
तुम्हें लिख पाऊँ इतनी मेरे स्याही की औकात नहीं,जो तुम्हे पूरा बयां कर सके
..... कि तुम्हीं कहो मैं तुम्हें क्या लिखूं ?

