क्या होगा
क्या होगा
मैं सब करके देख चुका हूं,
अब सब्र करने से क्या होगा..
ये मंजर है मौत का मंजर..
फ़क़त अब डरने से क्या होगा..
अ ज्ञा त ख़त्म कर चुका है सब चाहत
अब तुम्हारे सजने-संवरने से क्या होगा...
मैं तैराक हूं इश्क़ के समंदर का..
मोहोब्बत के इक झरने से क्या होगा..
है जरूरत मुझे प्रायश्चित करने की..
मैं देखता हूँ ना करने से क्या होगा...
जेहन भरा पड़ा है जख्मों से मेरा..
अब इनके ना भरने से क्या होगा...
मैं खुद ही तोड़ चुका हूं हर वादे को जानम..
आपके ना मुकरने से क्या होगा..
मेरा तो जीने में दम घुटता है
मेरा सवाल है कि मरने से क्या होगा...!!
