STORYMIRROR

Mukesh MAC

Others

3  

Mukesh MAC

Others

साहब

साहब

1 min
126

हम से नफ़रत वाजिब है साहब 

जो न किए नफरत तो मोहब्बत हो

जाना वाजिब है साहब 

तजुर्बा कभी बेकार नहीं जाता

साहब

महफ़िल की वाह में अपनी आह 

छुपी होती है साहब 

हम शायरी नहीं खुद पर गुज़री 

दास्तान सुनाते है साहब 

कभी ख़ुशी होती होंगी तो कभी 

आँखें भर जाती होंगी साहब 

मेरी शायरी में हो सकता है 

तुम्हें अपनी 

कहानी नज़र आती होंगी साहब 



Rate this content
Log in