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Pawanesh Thakurathi

Abstract

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Pawanesh Thakurathi

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क्या आजादी मिल पायेगी उन्हें ?

क्या आजादी मिल पायेगी उन्हें ?

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जिनके पांव बंधे हैं

बंधनों की बेड़ियों से

जिनके इरादे टूटे हैं

सामाजिक रूढ़ियों से

क्या आजादी मिल पायेगी उन्हें ? 


जिनकी इच्छाएँ मर गई हैं

अव्यवस्थाओं की मार से

जिनके सपने बिखर गये हैं

अभावों के वार से

क्या आजादी मिल पायेगी उन्हें ? 


जिनका बचपन गुजर रहा है

सड़कों के किनारे

जिनके हिस्से की धूप निगल रहे

बादल सारे

क्या आजादी मिल पायेगी उन्हें ? 


जो जूझते रहते हैं

एक अदद हंसी के लिए

जो लुटते रहते हैं

एक बूंद खुशी के लिए

क्या आजादी मिल पायेगी उन्हें ? 


जिनका जीवन झुलस गया है<

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निर्धनता की आग में

जिनके हौसले छलनी हो गये

कंटीले निर्जन बाग में

क्या आजादी मिल पायेगी उन्हें ? 


जो षडयंत्र से बंदी हुए

असत्य के हमलों से

जो प्रेम में विवश हुए

अत्याचारी गमलों से

क्या आजादी मिल पायेगी उन्हें ? 


जिनकी उम्र कट रही है

एक रोटी की परिधि भीतर

जो कहते हैं हम क्या करेंगे

ऐसी जिंदगी जीकर

क्या आजादी मिल पायेगी उन्हें ?


क्या आजादी मिल पायेगी उन्हें

जो वंचित हैं

असहाय हैं

बंधे हुए

निरूपाय हैं


क्या आजादी मिल पायेगी उन्हें

जो गुलाम हैं

तन के

धन के

निज मन के।। 


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