कविता
कविता
आओ करे राष्ट्र का वंदन
वंदे मातरम वंदे मातरम,
अंग्रेजों से लड़कर हमने
पाई यह स्वर्णिम आजादी
मातृभूमि की खातिर जिसने
अपने प्राण किए न्यौछावर
उनको करे भाल पर चंदन
वंदे मातरम वंदे मातरम,
भगतसिंह आजाद उधमसिंह
ने रंग दिया बसंती चोला
और तिरंगा लेकर दौड़ा
देश प्रेमियों का एक टोला
गांधी ने हुँकार भरी तब
निकल चले हर घर से नंदन
वंदे मातरम वंदे मातरम,
प्राण दिए देश की खातिर
फिर भी कहाँ मिली आजादी
नेहरू शास्त्री और सुभाष के
सपनो की कैसी बरबादी
नीलगगन से उड़ा होंसला
खोल दिए हाथों के बंधन
वंदे मातरम वंदे मातरम,
कुर्सी सौंपी जिन्हें देश की
उसने ही मन भर कर लूटा
खाकर कसमे राजघाट पर
सबने अपना हिस्सा कूटा
पगडंडी से राजमार्ग तक
आओ करें राष्ट्र अभिनंदन
वंदे मातरम वंदे मातरम!
