कविता
कविता
वकील तो हम भी है तेरे इश्क में
डर लगता है , कही कोई नालिश ना करदे।
काफी बरसो से संभाल रखा है इस दिल को
कैसे छोड़ दे , कही कोई साजिश ना करदे।
तू है मेरे सामने बस अब इतना ही काफी है
खयाल रखना ,कही कोई गर्दिश ना करदे।
अभी भी खुले है घर के दरवाजे मेरे
रास्ते फूंक के आना,कही कोई बंदिश ना करदे
बता देना सब मेरे बारे में घरपर तेरे
पर संभलना, कही कोई जुम्बिश ना करदे।
और हाँ ये मत कहना की में शायर हूँ
क्या भरोसा कही कोई फरमाइश ना करदे।