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Ruchika Rai

Abstract Others

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Ruchika Rai

Abstract Others

कवि मन

कवि मन

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कवि का मन, कभी चंचल कभी स्थिर

कभी डूबे बीच सोचों के भँवर।

कभी उड़े अनंत गगन निर्भय निश्छल।

कवि का मन सहज सरल

दुख से द्रवित हो जाये दूसरों के

खुशियों में हो जाये आनंदित हर पल।

कवि का मन, प्रेम रस में भींगा 

या फिर विष जीवन का पीकर हुए

शिव हर क्षण, हर पल।

कवि का मन सोचे सामाजिक ताने बाने को

या फिर सोचे समस्याओं को हर पल।

जो न आवाज उठा पाये

उनको भी लेकर के आये

सम्मुख सबके वक़्त बेवक़्त।

कवि का मन।

कवि का मन मीत बनकर साथ निभाये,

कभी वो नफरतों की आग को बुझाए,

कभी वैमनस्य को भड़काए।

कवि का मन

अपनी उर की व्यथा को पन्नों पर लिख जाए।

कवि मन हर मन को समझ जाए।


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