क्वारंटाइन का माहौल
क्वारंटाइन का माहौल
सूनी सड़क, सन्नाटा पैर पसारे बैठा था ग़ायब था कोलाहल
हवाओं के टुकड़े बिखर तो रहे थे, किसी से टकरा नहीं
सूरज भी चाँद की राह मे चमकता, बिलकुल मेरी तरह
न जाने कहाँ ग़ायब हो गए दुनिया के खतरनाक जानवर
शहर की हवाएँ भी शायद पहचानती हैं अपनों को
तभी पास पास फिरती है’, देह छूने भर की रस्म निभाती
सूना तो सब था बाहर, लेकिन अंदर भीड़ सी कोलाहल
उमड़ती थी
उसकी याद भी शालीनता से आती, लेकिन झकझोर
कर चली जाती
दीवारों के बीच सिमटी ज़िंदगी, जो कैद थी
खिड़कीयों की नज़र से दुनिया देखना सीख रही थी
खाली खाली सड़कें लग रही जैसे किसी ने
शतरंज की बिसात से सारी मुहरें चुप चाप चुन ली हो
उस ऊँची इमारत का हाल भी वैसा था
लेकिन आम दिनो मे खाली रहने वाली एक के ऊपर एक
माचिस की डिब्बियों की तरह पंद्रह माले की
बालकनियाँ अब गुलजार हो रही थी
पड़ोसी का नाम जान पा रहे थे
सुपर मार्केट से बड़ी थैलियों के बजाए
रस्सीयों मे बंधी टोकरियों से सामानों को
ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर लटकाया जा रहा था
न जाने बड़े शहर मे छोटे गाँव की नज़ाकत दिख रही थी
तमाम बलकनियाँ नए नए रिश्तों की गवाह बन रही थी
टोकरियों की मदद से पड़ोसी की मदद कर रहे थे
कभी टोकरी खाली नहीं भेजी जाती,
क्योंकि बर्तन खाली नहीं लौटाए जाते
वही दूसरी ओर बालकनी पर सर टिकाये
किसी की याद मे खड़ा था वो लड़का
जो दूर हो कर भी उसके करीब हो
शरीर नहीं लेकिन आवाज़े छूती हो उसको
वो हाथों मे हाथ न होना या बाहों मे उसके हाथों का खालीपन
चेहरे पर उसकी वजह से खुशी या शरारत वाली मुस्कान
पसरा दिल की सड़क पर सन्नाटा लॉंक़ डाउन की वजह से
सूना सा था
याद की नदी मे वो डूबता जा रहा था या फिर कोई खींच
रहा था
मिले न जाने कितने दिन हो गए थे
लेकिन यादों से लगता जैसे अभी ही गुज़रा पल हो
पॉकेट से निकली एक छोटा से कागज़ का टुकड़ा देखा
मुस्कुरा कर उम्मीद की किरण लिए अंदर चला गया
पुराने पल को याद करके नए जीवन की फिर से बुनना होगा
उम्मीद थी मिलने की उसके बांहों मे लिपटने की
उम्मीद थी कुछ दिनो पहले आए उस गाँव की नज़ाकत बनी रहे
उम्मीद थी उस प्रकृति की स्वछता बनी रहे जो अनजाने मे हुई थी