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NIKHIL KUMAR

Inspirational

4  

NIKHIL KUMAR

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जीवन : एक संघर्षगाथा

जीवन : एक संघर्षगाथा

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तैयार हो जा लेके शस्त्र,

रोक न काफ़िला विजयरथ का

घिस अपने को पत्थर पर

बढ़ा धार अपने जीवन कृपाण की


पीघला कर अपने दर्द को

लेप लगा अपने घाव पर

बिना कश्मकश के हासील

ना होगा कुछ

चाहे शेर हो या हो हिरण 


दुनिया तौलेगी तुझे तेरी औकात में

याद करेगी बस जो छोड़ा है तूने

विरासत में

आगे दरिया हो या हो समंदर

रहना तो है तुझे बनकर कलंदर


ये तो कलयुग का कुरुक्षेत्र हैं

तू ही कृष्ण, अर्जुन और दुर्योधन भी तू हैं 

बन अभिमन्यु तोड़ इस चक्रव्यूह को

तभी संभव की खुद पर विजय हो 


लड़ना तो तुझे अपने आप से है

क्योंकि युद्ध बिना जीना नीरस है

हार-जीत तो एक सिक्के के दो पहलू हैं

प्रयास न करना तेरी सबसे बड़ी भूल है


शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है

वो क्या गिरेगा जो खड़ा ही नहीं हुआ है

जला के मिशल-ए-जन तू जुनून-सिफ़त-चले

अज़ीब नगर यहाँ न दिन चले न रात चले



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