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NIKHIL KUMAR

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NIKHIL KUMAR

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गर्मी का कहर

गर्मी का कहर

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गर्मी आई, गर्मी आई

शीत को इतनी दूर भगाई

रवि ने ऐसी धूप दिखाई

पानी बहुत दूर भाग गई


यहाँ अब हो रहा आकाल

इस रंगमंच पर हुआ हाहाकार

सब भागे इधर-उधर

पानी ढूंढे कनक की तरह


धरा ने अपना रौद्र रूप दिखाया

पानी को अपने अंदर रख लिया

सूरज ने गुस्सा दिखाया

दुःख की बारिश को लाया


जहाँ देखो सूखा ही छाया

गरीब किसान को तड़पाया

कैसे झेले ऐसी दुखिया

जो सूरज ने है दिखाया


फिर कुछ दिनो मे ऋतुरानी आई

रवि को पराजित कर नीर जो लाई

कृषक के अंदर आई जान

वसुंधरा को मिला एक जीवनदान


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