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NIKHIL KUMAR

Others

4.6  

NIKHIL KUMAR

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तुम लड़की हो !

तुम लड़की हो !

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ना बनो तुम बागी

ना मांगो तुम आज़ादी

जैसी हो वैसी रहो,

हो तुम अभागी

पता है ऐसा क्यों?

क्योंकि तुम लड़की हो,

लड़की हो, तुम लड़की हो।।


तुम पर तो हर कोई

अपना रौब दिखाएगा,

अपनी शिक्षा के लिए

अपनों से लड़ना पड़ जाएगा

नहीं चाहता है कोई तुमको

पता है ऐसा क्यों ?

क्योंकि तुम लड़की हो,

लड़की हो, तुम लड़की हो।।


तुम पर तो रहेंगी बंदिशे

घुटती रह जाओगी

ताकतवर हो फिर भी

अबला नारी कहलाओगी

लाचार हो तुम, समाज से

लड़ती रह जाओगी

पता है क्यों ?

क्योंकि तुम लड़की हो,

लड़की हो, तुम लड़की हो।।


सुन पुरुष सुन ले मेरी

एक पुकार

भूचाल आ जाएगा गर दी

हमने एक ललकार

तू भी तो उत्पन्न हुआ

इसी लड़की की कोख से

फिर क्यो रौब

दिखाता है

अपनी झूठी चौड़ पे

पता है मैं ऐसा क्यो बोल रही हूँ?

क्योंकि मैं लड़की हूँ,

लड़की हूँ, मैं लड़की हूँ।।


कुलरक्षक हूँ मैं जगत जननी

जगत कुमारी

ताकतवर, अम्बा काली

जगत धात्री

इतना तुम मे हिम्मत नहीं

की लड़ सको

दम नही तुम मे बिना झूठे

समाज के सहारे लड़ सको

पता है ऐसा मैं क्यो बोली रही हूँ?

क्योंकि मैं लड़की हूँ,

लड़की हूँ, मैं लड़की हूँ।।


हाँ मैं एक लड़की हूँ,

कायर नहीं, शूरवीर हूँ

मैं वीरांगना हूँ कर्मशील,

नौ चंडी नारी हूँ

अपने दिल तसल्ली के लिए

अबला कह रहे हो

क्योंकि मैं दुर्गा हूँ, काली हूँ,

मैं नारी हूँ, आज मैं भड़की हूँ

हाँ मैं एक लड़की हूँ गर्व मुझे

मैं लड़की हूँ, मैं लड़की हूँ, मैं लड़की हूँ।।  



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