कुदरत का संयोग
कुदरत का संयोग
मुरझा गई मेरे प्रेम की ज्योति
काश तुम मेरे पास तो होती
अपनी किससे व्यथा कहे हम
तुम्हारे लिए अंखिया अब भी रोती
भूल गई क्या प्रेम हमारा
जगती अंखिया देखे तारा
सूनी तुम बिन मेरी जिंदगानी
प्रीति तुमसे हरहाल में निभानी
तुमसे मेरा जो हुआ वियोग है
इसमें कुदरत का ही संयोग है
किसलिए मैं तडपूं दिन रतिया
ये जाने सिर्फ मेरे दिल की बतिया।