कुछ तो लिख
कुछ तो लिख
कैसा मुझसे रिश्ता है,
इस पर कोई छंद तो लिख।
किसने बोला ज्यादा लिख,
लिखने को तू चंद तो लिख।।
मैं शाम सवेरे भटका सा,
लिखने को तू ठहरा लिख।
लिखता है क्यों सोया है,
जागा है वो जागा लिख।।
अंगारों की दुनिया है ये,
मुझको तो तू कालिख लिख।
कहने को तो रात है काली,
लेकिन मन को काला लिख।।
ये जो सब भरा भरा है,
सब अंदर से खाली है।
सूखा है आंखों का पानी,
लिखने को तू भारी लिख।।
तुझे जो रोके लिखने से,
कलम पुरानी से तू लिख।
सब से तुझको क्या लेना है,
तुझे जैसा लिखना वैसा लिख।।
पंछी उड़ना सीख सके,
ऐसी ही तू माला लिख।
भारी मन या तन भारी हो,
हो हल्का कुछ ऐसा लिख।।
जैसा है वैसा क्यूं लिखना,
थोड़ा तू भी हटके लिख।
दिन में सूरज का अंधेरा,
अंधेरे से उजाला लिख।।
