कुछ रूप ज़िन्दगी के
कुछ रूप ज़िन्दगी के
जिन्दगी जैसे डाल की चिड़िया,
छोड़ कर नीड़ फुर्र उड़ जाती,
साँस की डोर पर पतंग तनी,
पेच लड़ते हैं और कट जाती।।
जिन्दगी है दुल्हन की अँगड़ाई,
करती है इंतजार प्रियतम का,
डोली चढ़ती है सनम आते ही,
और आगोश में सिमट जाती।
जिन्दगी रुख पै पड़ा घूँघट है,
देख लेने को ललक उठती है,
पर हकीकत जो नजर आती है,
अच्छे-अच्छों की नजर हट जाती।
जिन्दगी ख्वाब भरी निंदिया है,
जाग कर जिसको देखा जाता है,
पर हकीकत की नींद आने पर,
खुद ही ख्वाबों से दूर झट जाती।
जिन्दगी है पड़ाव कुछ पल का,
ये कहानी है कारवाँ की किसी,
जिन्दगी फासला है मंजिल का,
जिसको तय करते उम्र कट जाती।
