कुछ पता नहीं
कुछ पता नहीं
ईश्वर की दी अनमोल अमानत है जिंदगी
अढ़ाई दिन की बादशाहत है जिंदगी
हर पल को जी भर के जिया जाए
न जाने कब लौटानी पड़ जाए
कुछ पता नहीं।
मत हो उदास देख कर औरों की खुशी
वक्त सबको बांटता सबके हिस्से की खुशी
लेकिन किसे ,कब, कहां, कितनी मिलेगी?
कुछ पता नहीं।
तन्हाई से घबराकर अपना साथ ढूंढती हूं
अपने ही मन को टटोलती हूं
कब हो जाए मन का मौन मुखर
कुछ पता नहीं।
वक्त तो मुसाफिर है गतिशील सदा रहता है
वक्त अक्सर चाल बदलता रहता है
कब हो जाये अनुकूल कब प्रतिकूल
कुछ पता नहीं।
वो उसका दोस्त है दगा न देगा
मुसीबत में उसका साथ देगा
ये सच है या है उसका भरम
कुछ पता नहीं।
दौड़ रहें हैं भीड़ में सभी इस कदर
धकिया रहे हैं एक दूजे को बेखबर
कहां जाता है रास्ता मगर
कुछ पता नहीं।
मुरझाए हुए हैं फूल रो रहा चमन जार जार
हुआ है फिर किसी कली का बलात्कार
क्यों मानव बन गया है दानव
कुछ पता नहीं
सड़क पर भूखाप्यासा बच्चा भीख मांगता हैै
मासूम बचपन संवेदना जगाता है
सोचती हूं क्या सांझ को खा पाता है भरपेट रोटी
कुछ पता नहीं।
वो रोज कुआ खोदता है रोज पानी पीता है
रात को थकाहारा बेफिक्र होकर सोता है
क्या होता है चोरी का डर उसे
कुछ पता नहीं।।