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Anjali Srivastav

Abstract

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Anjali Srivastav

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कुछ कर गुजरना

कुछ कर गुजरना

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अबकी बार कुछ कर गुजरना

ऐ मेरे दोस्त जरा संभल कर कुछ करना

उन्हें नहीं पता है कि कैसे होते है ये त्यौहार।


क्या होते है ? सर के छत और ईटों की दीवार

उन्हें तो ये भी नहीं पता उनके माँ -बाप है ? कौन

इसलिए खामोशी का ओढ़ें चादर रहते है मौन।


एक पापी पेट के वास्ते

कचरों में से रोटी निकालते हैं

झपट कर उनको बड़े चाव से

पकवान समझकर सब निगल जाते हैं।


आज से ही एक संकल्प करो

अपने हिस्से में से इनके लिए कुछ तो करो

हम सब अपने लिए और अपने बच्चों के लिए

सब कुछ तो करते हैं।


तो क्यों न अब की दीवाली इनके लिए भी कुछ करते हैं

देखना बहुत सुकून मिलेगा

आपको भी, इनको भी मतलब हम सबको

तब होगी असली चमक, दीवारों पर नहीं,


हमारी सुंदर समुद्र - सी गहरी आंखो में

अबकी दीवाली तब खुशी की होगी अपनों के संग

झूमती, बलखाती हर कली और शाखो में।


यही एक छोटा सा पहल कर लेना

असहाय, लाचार की बनाई हुई मिट्टी के दिए खरीद लेना

उनको भी मिल जाएगी उनके हिस्से की खुशियां

यही उपहार स्वरूप नेक कर्म देना

दुआएं आसमान भर अपने लिए समेट लेना।


उनके आंसुओं के मोती रूप एक- एक

बूंद में झांक कर देखना

उसमें मिलेगा तुमको, असली चमक दिवाली की।


जहां अपनो के प्यार का सागर उमड़ेगा, असीम

धरा और अम्बर सब झूम उठेंगे

मिलेंगी तुम्हें भी अपनेपन का अहसास का पिटारा

जिसे तुम बांध कर जीवन पर्यन्त तक सहेज कर रखना !


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