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Jayantee Khare

Abstract

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Jayantee Khare

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कुछ दुआएँ क़ुबूल नहीं हो पातीं

कुछ दुआएँ क़ुबूल नहीं हो पातीं

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सूरतें भी अक्सर बदल जाती हैं

लोगों की सीरतें सामने आ जाती हैं

तस्वीरें भी कभी कभी झूठ बोल देती हैं

शुक्र है लोग तस्वीरों से बाहर नहीं आते


दिल सच मानना नहीं चाहता

दिमाग़ सच जानना नहीं चाहता

सच को कब तक झुठलाया जाए

कुछ सच कभी झूठ नहीं हो जाते


दिल कहीं अटक के रह जाता है

कोई सराबों में भटकता जाता है

मिटाते हैं ख़ुद को ही किसी के लिये 

कुछ वाकये यादों से मिट नहीं पाते


सपनीली आंखें अंधी होती हैं

सब ख़त्म होता है नींद जब खुलती है 

वक़्त सूखी रेत सा हाथों से फिसल जाता है

गुज़रे लम्हे लौट के कभी नहीं आते


शिद्दत से मांगी गयी शय मिल जाती है

मन्नतों से ख़ुदा की रज़ा बदल जाती है

कहते हैं तक़दीर ख़ुद भी बनाई जाती है

लेक़िन कुछ लकीरें मुड़ नहीं पातीं


कुछ नवाज़िशें असल में कमतरी होती है

कुछ दुआओं के रद्द होने में बेहतरी होती है

शायद ये ख़ुदा को ही समझ आता है

तभी कुछ दुआएं क़ुबूल नहीं हो पातीं।


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