कुछ अनकही अनसुनी बातें
कुछ अनकही अनसुनी बातें
मैं अगर नादान सही तुम तो क़ाबिले तारीफ हो
मेरी हर कमी हर गलत कदम से वाक़िफ़ हो
थोड़ी नाराज़गी ही सही कभी मिलने तो आओ ना
पास बैठकर मेरे कुछ ग़लतियाँ कुछ कमियाँ गिनाओ ना
बदलना इंसान की फितरत है मैं भी खुद को बदल दूँगा
बुद्धिमान जो न बन सका तो कम से कम थोड़ा सा तुमसे अकल लूँगा
माना कुछ जज्बाती हूँ थोड़ा जज्बात में बह जाता हूँ
कुछ उम्मीद से ज्यादा अनकही अनसुनी बातें कह जाता हूँ
कहते हैं कि तुम मुस्कान बांटते फिरते हो
हर अजनबी से अपनापन जताकर मिलते हो
कभी मुझसे भी थोड़ा अपनापन जताओ तो सही
बेवजह बिन कहे बिन पूछे मुझे भी अपने गले से लगाओ तो सही..