करवा चौथ
करवा चौथ
कर निर्जल ब्रत करवा चौथ का
सिंदूर सजा पिय के नाम का
गौरीनंदन का मिले आशीष
करूँ कामना यह मैं जगदीश।
हाथ में रचा मेहंदी खनकाती कंगन
छम-छम बजती पाजेब की रुनझुन
लगा महावर सजा के गजरा
माँगू सुहाग फैला के अचरा।
लाल चुनरिया ओढूँ हरदम
माथे की बिंदिया चमके चम-चम
अपने हर कर्तव्य निभाऊँ
सौभाग्यवती सदा कहलाऊँ।
करक चतुर्थी का ब्रत पावन
संग सजे सदा मेरे साजन
निहारूँ इंतज़ार में नील गगन
उगता चंद्र लगता मनभावन।
दोनों कर जोड़ निवेदन करती
सदा चमके सिंदूर यह वर माँगती
सुनहरे चंद्र को छलनी से निहार
करती तब प्रिय का नैनों से दीदार।
प्रीति रीत का यह त्यौहार
प्रेम समर्पण हो जीवन का आधार
जगमग- जगमग चमक रहे शशि
बरसाते सुख सौभाग्य अमिय रस।
