Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

कर्ण

कर्ण

1 min
14K


अर्जुन खड़ा है रण में,

ताने कर्ण पर तीर,

चक्के के चक्कर में,

फँसा कर्ण बड़ा गम्भीर,

कृष्ण कहें हे पार्थ,

तुम काहे को संकुचाते हो,

धर्म युद्ध है ये,

क्यों कर तुम घबराते हो ?


नहीं चला सकता,

निशस्त्र पर मैं बाण,

अच्छा होगा लड़कर,

मैं त्यागूँ अपने प्राण,

देख दशा फिर अर्जुन की,

कृष्ण हुए गम्भीर,

बोले अधर्म में जय पाना,

है धर्म तुम्हारा वीर।


मोह को त्यागो कौंतेय,

शरासन लहराओ,

धर्म खड़ा है साथ में,

अधर्म को मार भगाओ,

नाम अपनाम सब कृष्ण को,

करके अर्जुन अर्पण,

शर चलाया राधेय पर,

उसने देख धर्म का दर्पण।


महाभारत के समर में,

पांडव ने जय को पाया है,

कह गए प्रभु भी यहाँ कि,

धर्म ध्वजा लहराया है,

किंतु दानवीर ने प्राण भी,

धर्म के नाम पर दान दिए,

निश्चिन्त गया इस लोक से,

एक अनोखा मान लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics