कोरा कागज़
कोरा कागज़
कोरे कागज़ पर लिखते हैं,
स्याही से कोई दास्ताँ,
"कागज़ भी तब खिल जाते हैं,
स्याही से जब भर जाते हैं।"
अकेलापन किसको पसंद,
सबको जरुरत साथ की,
जब साथ मिल के काम हो,
बन जाता है इतिहास वो।
कोरे कागज़ पे लिखते हैं,
स्याही से जब उस इतिहास को,
"कागज़ भी तब खिल जाते हैं,
स्याही से जब भर जाते हैं।"
बीता हुआ तो, क्या हुआ,
पर आज भी तो याद हैं,
आँखों के न है सामने,
कागज़ पर वो तो आज हैं।
कोरे कागज़ पे लिखते हैं,
स्याही से जब उस याद को,
"कागज़ भी तब खिल जाते हैं,
स्याही से जब भर जाते हैं"।
वो झिलमिलाती बातों को,
यूँ झिरझिरा के याद कर,
यूँ बैठ न खामोश तू,
उस बात को याद कर।
कोरे कागज़ पर लिखते,
स्याही से जब उस बात को,
कागज़ भी तब खिल जाते हैं..