कोई तुमसे पूछे
कोई तुमसे पूछे
कोई पूछे तुमसे कौन हूं मैं
कह देना कोई खास नहीं
दिल के था तो बेहद करीब
अब लेकिन उससे कोई आस नहीं।
रास्ते का था कोई पथिक
जिसको मंजिल की तलाश नहीं
जिसकी तृष्णा में भी प्यास नहीं
शायद वो खानाबदोश
जिसको कोई रास नहीं।
जिंदगी की इस गांठ में
रेशम सा एक धागा है
सुस्ती सीली दोपहरों से
जो धूप चुरा कर भागा है
कोई तुमसे पूछे कौन हूं मैं
कह देना मुझे याद नहीं।