चाय और मेरी ज़िन्दगी
चाय और मेरी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी 'चाय' की तरह है अपनी,
दूध के पैकेट सी ज़िन्दगी
मैं चाय की पत्ती और तुम
चीनी के दानों सी...
कोयले की धीमी आंच पे
जैसे चाय पकती है...
वक़्त की धीमी आंच में
एक दूजे से हमें ऐसे घोला
हम एक हो गए मोहब्बत
के सॉसपैन में,
तुम, मैं और जिन्दगी
जैसे चाय होती है...
इस बेस्वाद सी ज़िन्दगी में,
तुम्हारे आने से मिठास घुल गई
हाँ...
ठीक वैसे ही मिठास जैसे
चाय में होती है,
चीनी के घुलने से...
पर उसके बाद पता नहीं क्यों,
जैसे फेक देते है चायपत्ती छानकर
ठीक वैसे ही मुझे अलग कर दिया गया
बिल्कुल उस चायपत्ती की तरह...
और अब ज़िन्दगी में
बस तुम ही तुम हो
मैं होकर भी नहीं हूँ
और शायद मैं अब
किसी की ज़िन्दगी में
रंग नहीं भर सकता
खुद अपने में भी नहीं...