STORYMIRROR

Shubham Pandey gagan

Abstract

2  

Shubham Pandey gagan

Abstract

कमाल हो गया

कमाल हो गया

1 min
218

मेरा अब थक के गिर जाना आम हो गया

फिर से रस्ते पे लग जाना भी कमाल हो गया,


तुम मुझे कहते हो मैं क्या हूँ

तुम्हारा यूँ ज़ुबान से गिर जाना कमाल क्या हो गया,


ताज़्ज़ुब क्यों है मुझे मंज़िल पे देख कर तुझे

मेरा गिर के संभल जाना बेमिसाल हो गया।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract