Shubham Pandey gagan
Abstract
मेरा अब थक के गिर जाना आम हो गया
फिर से रस्ते पे लग जाना भी कमाल हो गया,
तुम मुझे कहते हो मैं क्या हूँ
तुम्हारा यूँ ज़ुबान से गिर जाना कमाल क्या हो गया,
ताज़्ज़ुब क्यों है मुझे मंज़िल पे देख कर तुझे
मेरा गिर के संभल जाना बेमिसाल हो गया।
मज़दूर
जीना चाहता हू...
होली
माँ
हवाले कर दो
होली में
ग़ज़ल
नमन है
नया साल
कुछ ऐसे भी होते हैं जो बदन पर खाल के जैसे हमेशा को रह जाते हैं ! कुछ ऐसे भी होते हैं जो बदन पर खाल के जैसे हमेशा को रह जाते हैं !
जब मैं बोल भी नहीं पाता था.. सिर्फ़ मेरे इशारों से मैंने उन्हें हर ख्वाहिश पूरा करते दे जब मैं बोल भी नहीं पाता था.. सिर्फ़ मेरे इशारों से मैंने उन्हें हर ख्वाहिश पूर...
यह मुझे समझ नहीं आता इतना समझने की जरूरत भी क्या है यह मुझे समझ नहीं आता इतना समझने की जरूरत भी क्या है
हर तरफ टूट-टूट कर गिर रहा है वक्त का तंत्र और मुझे कविताओं की चिंता है। हर तरफ टूट-टूट कर गिर रहा है वक्त का तंत्र और मुझे कविताओं की चिंता है।
आजादी का मतलब क्या है हम आप जानते हैं? आजादी का मतलब क्या है हम आप जानते हैं?
द्रौपदी की करुणा पुकार क्यों नहीं सुन पा रहे हो? द्रौपदी की करुणा पुकार क्यों नहीं सुन पा रहे हो?
अभी नहीं मालूम जीवन की कड़वी सच्चाइयां अभी नहीं मालूम जीवन की कड़वी सच्चाइयां
दिलों की गर्द लिख दूं, झूठ की हद लिख दूं। दिलों की गर्द लिख दूं, झूठ की हद लिख दूं।
गुलामी की बेड़ियों को हमने कई वर्षों तक सहा है, क्या होती गुलामी लंबे समय तक महसूस किय गुलामी की बेड़ियों को हमने कई वर्षों तक सहा है, क्या होती गुलामी लंबे समय तक ...
टुकड़ा - टुकड़ा बंटकर भी, अपना वजूद सिद्ध कर जाऊंगी ! टुकड़ा - टुकड़ा बंटकर भी, अपना वजूद सिद्ध कर जाऊंगी !
सूरज की किरणों से आज, स्वयं नग्न जल जाऊं मैं सूरज की किरणों से आज, स्वयं नग्न जल जाऊं मैं
तब राम का नाम जुबां पे आता तो है फिर भी वह सत्य को झुठलाता है तब राम का नाम जुबां पे आता तो है फिर भी वह सत्य को झुठलाता है
ककहरा को ककहरा ही रहने दें, उसके दुष्प्रयोग से नई व्याकरण न लिखें। ककहरा को ककहरा ही रहने दें, उसके दुष्प्रयोग से नई व्याकरण न लिखें।
वहां तुम्हारा राज चलेगा, है ना, सब कुछ शानदार। वहां तुम्हारा राज चलेगा, है ना, सब कुछ शानदार।
तेरा बुत बनू और बंद रहूँ मंदिर के तालों में, तेरा बुत बनू और बंद रहूँ मंदिर के तालों में,
अपने आपको ही बेवकूफ बनते हैं खुद ही खुद को गुमराह करते हैं अपने आपको ही बेवकूफ बनते हैं खुद ही खुद को गुमराह करते हैं
क्या, मेरा जीवन किसी सिनेमाघर के पर्दे से कम है ! क्या, मेरा जीवन किसी सिनेमाघर के पर्दे से कम है !
शंख की ध्वनि का हस्तक्षेप फिसल जाये पत्थर की काया से। शंख की ध्वनि का हस्तक्षेप फिसल जाये पत्थर की काया से।
यही बात बार-बार मनुष्यों से कहता हूँ मैं हाँ, समुद्र हूँ मैं। यही बात बार-बार मनुष्यों से कहता हूँ मैं हाँ, समुद्र हूँ मैं।