कलयुगी सीता
कलयुगी सीता
चला रावण सीता हरण को
छलने एक बार फिर सतीत्व को
अब हरण न वन में होगा
न भवन में होगा...
ललकार उठी सीता
अब हरण से पहले रण होगा
रावण लगा करने अट्टाहास
लगा कहने...
नियती तेरी बस इतनी
होगा तेरा हरण मेरे वरण हेतु
मुझे न आवश्यकता राम की
मुझे न आवश्यकता जनता आम की
रण निश्चित है-
है निश्चित रण
अब कोई भी रावण न कर सके
किसी भी सीता का हरण।
अंत तेरा तय है
तूने ललकारा स्त्रीत्व को
भूल जा तू भूल जा
आँचल में दूध
और पानी आँखों का
अब न होगी इस सीता की कहानी
काट दूँगी मैं भव बंध को
रूक तू रूक अभिमानी।
अब न होगा हरण
अब हर सीता का विचरण होगा सरल
बहुत पीया हमनें
हमनें बहुत पीया
अपमान का गरल।
अब न होगा सीता-हरण
हर सीता कर चुकी है
कर चुकी है
शक्ति का वरण।
रावण तेरा नाश तय है
शिव की आराधना कर
पर... पर...
करता रहा तू शक्ति का अपमान है
दूषित किया तूने नारी के सतीत्व को
ललकार उठी है हर सीता
अब न होगा
अब न होगा
अब न होगा किसी भी सीता का हरण।
