STORYMIRROR

Pooja Kumari Singh

Abstract

3  

Pooja Kumari Singh

Abstract

एहसास

एहसास

1 min
301

मैं, तुम्हें देख नहीं सकती

पर, तुम्हें देखती हूँ,

महसूस करती हूँ,

हर पल, हर क्षण

वह अनछुआ एहसास तुम्हारा

बिन जताया वह विश्वाश तुम्हाराI


सोचती हूँ कभीकभी

कहाँ और कैसे हो तुम ?

क्या ? मेरी कल्पनाओं की तूलिका

से आँके छवि जैसे हो तुम ?


इस क्षणिक जीवन की

क्षणभंगुरता को झुठलाता,

यह अनछुआ एहसास तुम्हारा

बिन जताया वह विश्वाश तुम्हारा

शब्दों से परे,


भावनाओं के आगोश में

प्रतिपल लाता है,

तुम्हें नजदीक मेरे

लौकिकता की सीमा से परे

अलौकिक है

यह एहसास तुम्हारा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract