कलयुग
कलयुग
धरती का भविष्य देख
स्वर्ग में थी खलबली,
देवगन आधीर थे
प्रलय की बात थी चली।
क्रोध में बोले सभी
संकट अब धर्म पर है,
झूठ का है बोलबाला
कलयुग अपने चरम पर है।
गुस्से में तब इंद्र बोले
वर्षा से धरती डुबा दूँ,
पवन देव ने कहा कि
वायु से सब कुछ उडा दूँ।
परशुराम फरसा लिए हैं
कहते सब को ख़तम कर दूँ,
धधकती अग्नि ने पूछा
क्या मैं पृथ्वी भसम कर दूँ।
लक्ष्मी जी ने ये कहा कि
सब को मैं कंगाल कर दूँ,
सरस्वती जी ने ये सोचा
अविद्या से बेहाल कर दूँ।
धरती का विनाश करने
शिव शंकर को हम बुलाएँ,
पूजा और स्तुति करके
प्रलय का तांडव कराएं।
तब रामचन्द्र जी हंस के बोले
दोषी सब के सब नहीं हैं,
माना ज्यादातर गलत हैं
इनमे कुछ अब भी सही हैं।
कृष्ण बोले मैं चलूँ क्या
सत्य को सम्मान दूंगा,
पाप को मिटाऊंगा और
गीता का मैं ज्ञान दूंगा।
ब्रह्मा जी ने ये कहा कि
मैं हूँ इनका जनम दाता ,
कितने भी हों दुष्ट ये पर
रहम मुझको इनपर आता।
आदि शक्ति ने कहा ये
एक मौका इनको दे दो,
पालनहारे इनके विष्णु
धरती पर अब उनको भेजो।
विष्णु बोले यही समय है
अब मेरा अवतार होगा,
दुष्टों का संहार करूं
कल्कि मेरा नाम होगा।
विष्णु नारद जी से पूछें
कहाँ मेरा धाम होगा ,
नारद बोले, देश सुंदर
भारत वर्ष नाम होगा ।
फिर नयी एक सुबह होगी
सत्य का प्रकाश होगा,
मन भी गंगा सा पवित्र
सतयुग का आगाज होगा।
न लड़ाई न कोई झगड़ा
मिलजुल कर सब खेलेंगे हम,
इस जनम के पार जाकर
नया जन्म तब ले लेंगे हम।
सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग
चारों युगों की ये सच्चाई,
लिया जन्म, मृत्यु भी होगी
इस से क्या अब डरना भाई।