कलयुग की द्रौपदी
कलयुग की द्रौपदी
देख जिसे लोगों की फिर जाती मती है
आखिर में फिर वो बन जाती सती है
लाज बचाने को फिरती रहती घर घर
कोई और नहीं वो कलयुग की द्रौपदी है
बना हुआ है बाप युधिष्ठिर लगा दिया दाव में
जवाई ने नोच डाला तन अब पड़ी है उसके पांव में
मारपीट और शोषण में सहमी रहती है चौखट पर
मलहम लगती अकेली वो हमेशा अपने घाव में
खड़े हुए थे विधुर सभा में सबने चुप कर डाला
एक चेतावनी ने रख दिया मुंह पर उसके ताला
नीर भरा नैनों में,
कई ख्वाब पड़े कोनों में
तख्ती आंखें लब खामोश सोच रही है गांव में
कितना प्यार था मां के आंचल की छांव में
सभा छोड़कर जाने के लिए करती गति है
कोई और नहीं वो कलयुग की द्रौपदी है
शिथिल पड़ा है अर्जुन का गांडीव,
बिक रहा बाजारों में
खोखली मान मर्यादा के चक्कर में,
खड़ा हुआ लाचारों में
सबके हाथों में धनुष,
अर्जुन के हाथों में ना दिख रहा है
कसमों वादों में उलझा हरदम,
एक कैदी सा दिख रहा है
मां की गोद पिता का आंचल,
बस सपनों सा दिख रहा है
नजर उठाकर देखूं जहां,
न कोई अपनों सा दिख रहा है
भीम की गदा चुप पड़ी है
समाज की बातें बहुत बड़ी है
कैसे पहचानें झूठ और सच
सामने विपदा बहुत बड़ी है
तमाशा देखे भीष्म और द्रोण,
दोनों ही खामोश खड़े है
अस्त्र शास्त्र धरे हुए है
मोमबत्ती सब हाथों में लेकर खड़े है
तन,मन,अंग अंग,कर दे भंग पहुंचाते क्षति हैं
कोई और नहीं वो कलयुग की द्रौपदी है
नकुल और सहदेव की शल्यचिकित्सा,
भर देती है तन के घाव
भरी सभा में पूछूं मैं,
क्या भर पाएगी ये मेरे मन के घाव
नहीं है त्रेता का युग, अब राघव नहीं आयेंगे
चीख चीख बुलाओगी फिर भी माधव नहीं आयेंगे
निकाले कैसे बाहर ? द्वार खड़े हैं दुशासन
पट्टा डालो कुत्तों को, सिखाओ इन्हें अनुशासन
बहुत खा लिया सब ने मुफ्त का राशन
बारी तुम्हारी, नया प्रावधान लाओ प्रशासन
छोड़कर बाबू सोना का रोना धोना
खेल कौशल में तीर, तलवार सीखो ना
रो रो कर, यूं न तुम, ऐसे मरो ना,
साथ अपने हमेशा हथियार एक रखो ना
जगाओ उस खप्पर वाली को मन में
धड़ से अलग तुम इनकी गर्दन करो ना
देख जिसे लोगों की फिर जाती मती है
कोई और नहीं वो कलयुग के द्रौपदी है
