कलमकार एवं कलम
कलमकार एवं कलम
सृजन दिन रात करता हूँ, सदा मैं गीत गाता हूँ।
कभी मैं छंद लिखता हूँ, कभी कविता सुनाता हूँ।
चले जो लेखनी मेरी, कृपा माँ की सदा मुझपर।
चरण में शारदे की मैं, सदा ही सर झुकाता हूँ।।
कभी उर के विरागों को, कभी अनुराग लिखता हूँ।
कभी मैं शांत होता हूँ, कभी मैं रौद्र दिखता हूँ।
कि आईना सरीखा हूँ, सदा मैं रूप दर्शाता।
अमीरों की दुकानों में, किसी कीमत न बिकता हूँ।।
कलम की धार है देखो, जगत से जंग लड़ती है।
कभी कोरा करे जीवन, कभी तो रंग भरती है।
कि जोगी शौक है उनका, सदा सच की करें सेवा।
कि सच जो हार जाए तो, कलम ये सुबक पड़ती है।।