जोगी के दोहे।
जोगी के दोहे।
1. वीरता
वीर पुरुष की वीरता, देती रण में जीत।
नित्य समर में गूँजती, वीर पुरुष के गीत।।
2. आजाद
पुनि पुनि करे प्रयास जो, होते खग आजाद।
जो थक कर हैं हारते, कहां हुए आबाद।।
3. प्रखर
प्रखर भाव से जो रखे, मनुज जीत की आस।
मंजिल उनको ही मिले, होते सफल प्रयास।।
4. वानर
वानर सहचर बन किया, माँ सीता की खोज।
हरते हनु संकट सकल, मनुज जपो हनु रोज।।
5. मल्हार
सावन आया झूम कर, ठंडी चली बयार।
तृण तृण अब पुलकित हुआ, देख राग मल्हार।।
6. चक्र
चलता निरंतर चक्र है, देत मनुज को सीख।
राजा को भी ना मिले, समय पड़े से भीख।।
7. छंद
सुन्दर शब्दों से भरे, कविवर रचते छंद।
मधुरिम भाव जगात हैं, जैसे हो मकरंद।।
8. स्वर
सुन्दर स्वर संसार में, देत मनुज को मान।
कटुता बोली में रहे, छिने सकल सम्मान।।
9. शाश्वत
शाश्वत है जीवन मरण, मत कर मनुज गुमान।
जो आए वह जात है, जाने सकल जहान।।
10. स्वीकार
गुरुवर पद में मोक्ष है, बात करो स्वीकार।
उनके प्रशस्त मार्ग से, हुए स्वप्न साकार।।
