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Vinod kumar Jogi

Abstract

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Vinod kumar Jogi

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बेटियों को समर्पित दोहे

बेटियों को समर्पित दोहे

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बढ़ा जमाना चांद तक, बढ़ी न मनु की सोच।

कुंठित विचार आज भी, जैसे पग में मोच।।१।।


बेटी आज बढ़ात है, हर पग अपना मान।

फिर भी मनु ना दे सका, बेटी को सम्मान।।२।।


राह चले सहमी सुता, चले हमेशा साथ।

हर बेटी सोचे सदा, हो अपनो का हाथ।।३।।


मनुज दिखावे को कहे, नारी सुता समान।

करे हरण फिर लाज का, बनकर वह हैवान।।४।।


जब भी बढ़ती बेटियाँ, देत मनु उन्हें चोट।

बात - बात पर है गिने, वह बेटी में खोट।।५।।


बेटी जलती दीप है, दो कुल करे उजास।

दोनों कुल का मान हो, करती यही प्रयास।।६।।


बिटिया बहना मात है, भिन्न-भिन्न हैं रूप।

ममता की गागर भरी, नारी परी स्वरूप।।७।।


महकाती उपवन सदा, बने सुगंधित फूल।

कुचल उन्हे आगे बढ़े, है मनुज की भूल।।८।।


जोगी जग से बोलता, हो नारी सम्मान।

जग में बेटी को मिले, उनके हक का स्थान।।९।।


बेटी देवाशीष है, देवों का वरदान।

सरल सहज से भाव हैं, ममता की है खान।।१०।।


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