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Vinod kumar Jogi

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शरद ऋतु एवं शीतलता

शरद ऋतु एवं शीतलता

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बरखा के पानी से जब,

धुली धरा की अनुपम काया।

संग शरद के नव जीवन में,

शीतलता का रंग पाया।


बहती ठंडी शीतल लहरें,

रोम - रोम में ऊर्जा भरती।

सुबह सबेरे ओस चमकती,

वसुधा का श्रृंगार है करती।


शीतलता पाकर पौधों में,

नव जीवन की आस जगी।

ओस की बूंदों में लिपटी,

बगीया में स्वर्णिम गेंदे लगी।


उपवन सजे हैं रंग - बिरंगे,

रंग - बिरंगे ऊनी कपड़े।

धुंध भरे शीतल सुबह में,

मंजिल को खगदल चल उड़े।



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