कल जो बस आएगी
कल जो बस आएगी
वर्षों से थकी , सूखी , सुस्त आँखे
बिना थके ही कठोर सड़क पर भाग रहीं थीं
ना उम्मीदी में सोई थी जाने कब से
आज उल्लास में जाग रही थीं
किस खबर ने नेत्र झील में आज हिलोरे मारे है
किस रूप के दर्शन को झलके अरमान सारे है
थराते हाथों की मुहब्बत किसके सर पे बरसेगी
तरसी है सालों तीन पहर अब ना शायद तरसेंगीं
बूढ़ी आँखों ने देखा दूर से आता कोई गाड़ी का साया
मन धक से कर ठहर गया , बूढ़ा शरीर सिहर गया
अलग अलग से चेहरे उतरे , अब शायद वो भी बाहर आएगा
एक और फ़ेक के झोला बस्ता, दौड़ गले लगायगा
बस तो ख़ाली हो गयी और उम्मीद भी कल सी ख़ाली है
वर्षों से थकी सूखीं सुस्त आँखे
आज फिर थक बैठी ,बूढ़ी काया रो भी ना पाएगी
शायद कल जो आएगी बस गाड़ी
वो तुमको लेकर आएगी ।