कल बनाते हैं
कल बनाते हैं
समा को देख हम जैसे नया सा पल बनाते हैं,
ज़रा सा बैठ मेरे साथ हम फ़िर कल बनाते हैं।
किसी के रात के ख्वाबों में आकर हम न बैठेंगे ,
नया सा ख्वाब हम फिर साथ में आ चल बनाते हैं।
अभी भी चाल ना बदली हमारी रात बातों की,
कहीं अब आफ़ताबों को चलो विव्हल बनाते हैं।
सुना है रात के तारों में बैठा राज़ एक ऐसा,
रुको इन चाँद तारों से गुथा आँचल बनाते हैं।
ये रोशन चाँद क्यों डूबा अभी तो रात बाकी है,
चलो इस चाँद को फिर चमकता चंचल बनाते हैं।
फ़लक़ से रात का दीदार देखेंगे ज़मीनों पर,
किसी के प्यार का हम आ अभी एक पल बनाते हैं।
घुटी है ज़िन्दगी मेरी हवाओं में रुकी है कब,
हवाओं को ज़रा सा अब चलो अफ़ज़ल बनाते हैं।