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Preeti Sharma "ASEEM"

Abstract

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Preeti Sharma "ASEEM"

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कल -आज आज-कल

कल -आज आज-कल

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कल -आज -कल

आज -कल करता रहा।


वक्त को मुट्ठी में भरने की,

तमाम कोशिशें करता रहा।

वो कहाँ रूका

वो भी कल -आज

आज- कल करता रहा।


जिंदगी के प्रश्नों के,

खंजर थे,

उस और।

हकीकतों के 

मंजर थे,

इस और।


मैं पहुँचने -पहुँचने में,

कल- आज,

आज -कल करता रहा।


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