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Nand Bahukhandi

Tragedy

4.0  

Nand Bahukhandi

Tragedy

कितना बदल दिया कोरोना ने

कितना बदल दिया कोरोना ने

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कितना बदल दिया कोरोना ने,

न कोई दिखता गली छतों में।

घर के अंदर कैद हुए हैं,

बाहर जाने से डरते हैं।

न कोई मिलने आता अबकी,

जा न पाते मिलने हम भी।

आम की फाँकी न कटती घर पे,

अचार न सूखता किसी की छत पे।

दादी कोने में दुबक के बैठी,

बना ली दादा से गज दूरी।

जिंदगी भर साथ रहे थे जो,

उम्र के अंतिम छोर में अलग वो।

मंदिर भी सुनसान पड़े हैं,

सब पर ताले लगे पड़े हैं।

न कोई शंखनाद है गूंजता,

घण्टनाद भी कोई न करता।

स्कूलों की भी दशा निराली,

मोबाइल संग न होती थी दाखिली।

वही मोबाइल अब स्कूल बना है,

ऑनलाइन क्लास का चलन बढ़ा है।

गोलगप्पे खाने को सब तरसे,

चाटो के ठेले अब न लगते।

बिन श्रृंगार मां दीदी बैठी,

पार्लर सैलून पर तालाबन्दी।

आस की किरण अब भी न छूटी,

पुराने दिन लौटेंगे क्योंकि।

वही लालिमा दिखेगी आसमा में,

कोरोना की हार होगी विश्व मे।

मां भारती लहलहायेगी फिर से,

गिद्दे की टापें होंगी हर घर में।

जयहिंद का नारा गूंजेगा नभ में,

भारत विजयी बनेगा विश्व में।



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