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SAAHIL MISHRA

Romance

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SAAHIL MISHRA

Romance

किसका है

किसका है

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हाय गालों पे गुलाबी ये निशाँ किसका है।

और पलकों पे तिरी ख़ाब जवाँ किसका है।।


रोक लेता है जिसे बारहा कहते-कहते।

सुर्ख होठों पे तेरे नाम निहाँ किसका है।।


सारे रिश्तों की ही बुनियाद टिकी दौलत पर।

दौर-ए-हाज़िर में भला कौन कहाँ किसका है।।


जिसके दर से न कभी भी कोई खाली लौटा।

दरमियाँ महलों के छप्पर का मकाँ किसका है।।


फैसला जिसने बदलवा दिया है मुंसिफ का।

वो गवाही भला किसकी है बयाँ किसका है।।;


जिसको देखा है अभी मैने खड़े साहिल से।

बीच मझधार में उठता वो धुआँ किसका है।



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