मैं सृजन संवेदना हूँ
मैं सृजन संवेदना हूँ
मैं सृजन संवेदना हूँ मैं करुण का त्रास हूँ।
या कहूँ कि हो रहे दुर्बल का मैं उपहास हूँ।।
कंपकंपाती ठंड़ हूँ मैं, ग्रीष्म का आभास हूँ।
वर्षा की शीतल फुहारें मैं मधुर मधुमास हूँ।।
भूख की मैं बेबसी भूखे का बस उपवास हूँ।
स्वप्न सी आँखों में पलती रोटियों की आस हूँ।
इक अहिल्या के लिये जो लिख विधाता ने दी वो।
*मैं किसी गौतम का दुःख हूँ राम का वनवास हूँ।।*
शारदे का पुत्र होने का जिन्हें गौरव मिला।
आज उनकी लेखनी का होता प्रतिपल ह्रास हूँ।।
बांसुरी की धुन को सुनकर दौड़ीं नंगे पांव जो।
राधिका का वो समर्पण कृष्ण का विश्वास हूँ।।
इक कुमुदिनी जो भ्रमर के छूने से ही खिल उठी।
हो रहा उनमे अलौकिक मैं वो पावन रास हूँ।।
आ रही लहरें समाये सीने में साहिल जिसे।
जलधि के उद्वेग में खारी छिपी वो प्यास हूँ।
