किसान की उम्मीद
किसान की उम्मीद
महीना आषाढ़ का था, उम्मीदों से भरा था।
एक किसान बारिश का इंतजार कर रहा था।
वह ना जाने क्या-क्या सपना संजो रहा था।
बारिश होगी ,बीज बोएंगे, फसल होगी।
चुनिया की शादी मुन्ने की फीस,
और कर्ज से मुक्ति मिलेगी।
बादल बरसे फसल बो दी।
उसमें उसने अपनी उम्मीदें भी बो दी।
उसमें चुनिया की शादी मुन्ने की फीस बोई थी।
दिन रात मेहनत करता रहता उम्मीदों का साथ ना छोड़ा।
फसल पक गई तैयार हो गई,
भगवान ने नाराजगी दिखाई।
पकी फसल चढ गई बारिश की भेंट में,
जो बची फसल थी वह मारी भाव ने।
उम्मीदें टूटी उसकी ,उसके सारे सपने टूटे।
चुनिया की शादी मुन्ने की फीस की आशा छुटी।
भगवान मत कर ऐसा, बुरी दशा है किसान की।
संघर्ष से वह नहीं हारा, उम्मीदों को फिर से पाल लिया।
एक दृढ़ निश्चय ही होकर फिर उसने,
अगली फसल का दामन थाम लिया।