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किसान की गाथा

किसान की गाथा

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किसान का कर्जा,

दिया गया उसको ऋण का दर्जा।

समाज के अनूरूप किया उसने ख़र्चा,

ख़र्चा बन गया वो एक पूरा परचा।।


सबसे प्यारा है मेरा किसान,

करता नहीं वह कभी आराम।

पूरे दिन करता खेतों में काम,

एक-एक दाना इकट्ठा करता।

खेती की है यही पहचान,

फिर भी रहता वह परेशान।


कपड़े भी वह फटे पहनता,

पाँव में चप्पल कभी नहीं मिलती।

हाथ में छाता लटका रहता,

कर्ज के बोझ में दब जाता है।

आत्महत्या भी कर जाता है,

फिर भी उनका दुःख जाने न इंसान।


ऐसा ही है अपना किसान,

क्या मिलता है पदक-सम्मान।

सबसे प्यारा है मेरा किसान,

करता नहीं वह कभी आराम॥


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