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Sudhir Srivastava

Tragedy

4  

Sudhir Srivastava

Tragedy

किन्नर हैं तो क्या

किन्नर हैं तो क्या

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मैं भी तो आपकी तरह ही

हाड़ माँस की ही बनी हूँ,

मुझे भी मेरी माँ ने जन्मा

प्रसव पीड़ा भी झेली थी,

मगर मुझे पाकर भी

खुश होने के बजाय

मुँह मोड़ ली थी।

पिता मायूस थे

किंकर्तव्यविमूढ़ से हुए,

समाज के डर से

गैरों की गोद जाने से मुझे

रोकने की हिम्मत न जुटा सके

दूर जाते देखते बस रह गए।

माँ बाप के होते हुए भी

मैं अनाथ सी हो गयी,

खून का जिनसे न था

दूर दूर तक रिश्ता कोई,

उनके आँगन की महकती सी

प्यारी गुड़िया बन गई।

पाला पोसा प्यार दिया

शिक्षा संस्कार दिया,

जहर का हर घूँट कैसा पीना है मुझे

ऐसा सद्व्यवहार दिया।

ये समाज उपेक्षित करता है जिसे

उन्होंने मुझे जीवन में

एक मुकाम दिया।

खुद रहे अनपढ़ मगर

मुझको शिक्षा का भंडार दिया,

कभी ऐसा लगा ही नहीं

उन्होंने ने मुझे जन्मा ही नहीं।

आज उन्हीं की बदौलत

मेरी भी पहचान है,

पद प्रतिष्ठा शोहरत

क्या नहीं है मेरे पास?

कल तक जो हमें

देखते थे हिकारत से

दुहाई देते थे अपने सम्मान

अपने रुतबे का,

आज वो मिलने को बेताब

हाथ जोड़े आते हैं मेरे पास।

कसूर किसका ये भूल जाइए

हम किन्नर हैं भूल जाइए,

आपकी तरह हम भी इंसान है,

आखिर आपके भगवान ही तो

मेरे भी भगवान हैं।

हमें भी पीड़ा होती है

हममें भी संवेदनाएं हैं,

हम भी देश के नागरिक हैं

हमारे भी कर्तव्य हैं तो

हमारी भी कुछ अपेक्षाएं हैं।

अब तो आँखे खोलिए

उपेक्षाओं से न अब हमें तोलिये,

हमें भी हमारा हक दीजिए,

हम भी इंसान हैं ये महसूस कीजिये

हम भी सिर उठाकर जी सकें

कुछ ऐसा प्रबंध कीजिए,

अन्यथा खुद को

इंसान कहना छोड़ दीजिए

और हमें भी तब

हमारे हाल पर छोड़ दीजिए।


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