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Nilabh Singh

Inspirational

3  

Nilabh Singh

Inspirational

ख्वाहिशें

ख्वाहिशें

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कैसी हैं ये ख्वाहिशें ,अब कैसा ये जमाना है 

किसी का घर जला कर किसी को घर चलाना है।

हिन्दी हो गयी हिन्दू ,हुई अब उर्दू मुसलमान 

गाने वाला सोच रहा है किस भाषा में गाना है।

न पूछो किस कदर अब पत्थर दिल इंसान हुआ 

जहाँ इक प्यासा मर रहा, वहीं उसको नहाना है।

जिंदगी बिकती रही ख्वाहिशों की खरीद में 

हम तो पूरे खर्च हुए, अब किसको बचाना है।

जेब की गहराई से जब हो रिश्तों में लम्बाई 

न तो नया बनायेंगे ,न निभायेंगे जो पुराना है।

बेमौका और बेवजह तारीफ क्यूँ करते हो मेरी 

फटा हुआ मैं नोट नहीं जो कैसे भी चलाना है।

मुफलिसी भी देख ली ,गैरत भी सम्हाल लिया 

ऐ जिंदगी, परखने का अब क्या नया बहाना है।

हर मौसम में ऐ गम तू मुसलसल साथ रहा 

ऐसा कौन सा रिश्ता है जो तुझको निभाना है।


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