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भीड़

भीड़

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भीड़ के टुकड़ों में बँट गया शहर मेरा,
हैरान हूँ, मुझसे ही कट गया शहर मेरा।

ऊँची ऊँची इमारतें ले गयी आसमान में,
चंद बेजान दीवारों में सिमट गया शहर मेरा।

गाड़ी, पैसे, शोहरत और रुतबे की बैसाखियां,
अपने ही पाँव से हट गया शहर मेरा।

जिस सम्त नजर जाये, देखिये ये बढ़ रहा,
कुछ भूखी आँखों में घट गया शहर मेरा।


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