ख्वाहिश
ख्वाहिश
कुछ ख्वाहिशें शिद्दत की तरह होती है
अगर मिल जाए तो नूर मिलता है
और ना मिले तो फितूर बन जाता है।
कुछ शामें है काबिल जैसी कुछ अनकही
अनजान जैसी सुकून तो मिलता उस सुरूर के साथ
जैसे शाम की ढलती हुई चाँद की चांदनी जैसी जैसे
जलेबी में भीगी हुई चाशनी जैसी
उस प्यारे से मीठे से उस पल के याद जैसी
वो खुशबू महका दे उस इत्र के प्यास जैसी !