ख़ुशियाँ
ख़ुशियाँ
ताउम्र खुशियां बटोरी थीं
जमा करते रहे एक बक्से में
इत्मीनान से मनाना चाहा था
फुरसत के सुनहरे लम्हों में
बढ़ती गई उम्र धीरे धीरे
फिसलती गई जिंदगी लमहे लमहे
अहसास न हुआ वक्त कब गुज़र गया
खड़े थे सामने लम्हे फुरसत के
खोला बक्सा मायूस हुए
बटोरी अमानत नदारद थी
खुशियों को बंदिश मंज़ूर न थी
वक्त ने उनका साथ दिया
कैद से उन्हें आज़ाद किया
हवास ज़मीर से रूबरू हुए
आईने में था अक्स खड़ा
अक्स हमारी फितरत था
क़ैफ़ियत हमारी समझ गया
बे-ज़ुबान
बे तकल्लुफी से बोल पड़ा
सबसे ख़ुश इंसान हैं वो
जो खुशियां बांटा करते
हैं
अपने हिस्से की खुशियां भी
मायूसों को दे देते हैं
उस दिन अहसास हुआ
ख़ुशियाँ हवा का झोंका हैं
जिंदगी में आती जाती हैं
चन्द घड़ियों का जलसा है
न किसी के कहे रूकती हैं
न किसी के चाहे टिकती हैं
उनका कहीं पड़ाव नहीं
उनका कहीं झुकाव नहीं
तहरीक हमेशा याद रक्खें
खुशियाँ जब भी दस्तक दें
सब के साथ मनाने में
वक्त कभी ज़ाया ना करें