Dinesh Dubey

Abstract

4  

Dinesh Dubey

Abstract

खुद की कमियां

खुद की कमियां

1 min
403


जीवन के मर्म को जो समझा,

वो सबसे बड़ा व्यापारी हैं,

जो समझ सका न खुद को कभी,

वो सबसे बड़ा भिखारी हैं।


खुद की कमियां गुण समान,

दूसरो की गुण बेमानी है,

खुद के मन में है मैल भरा,

दूसरों का मन बीमारी है।


खुद चलते है शतरंज की चाल,

दूसरो की हैं तोड़े नाल,

दूसरो का धन लूट कर बनाते,

खुद को वो माला माल।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract