ख़ूबसूरत ज़िन्दगी
ख़ूबसूरत ज़िन्दगी
मुझे इक नज़र देखने की, इच्छा मन में ना पालो
ऐसी अशुद्ध इच्छा से, तुम अपना ध्यान हटा लो
एक नज़र देखने से, कौनसी राहत मिल जाएगी
मुझे देखने की ये इच्छा, और भी बढ़ती जाएगी
मांस, हड्डी और ख़ून का, बना हुआ शरीर ये मेरा
मेरा ये चेहरा देखकर, क्या भला हो जाएगा तेरा
वक्त गुजरते गुजरते मेरा, ज़िस्म बूढ़ा हो जाएगा
फिर तेरी इन नजरों को, मेरा चेहरा नहीं भाएगा
ज़िस्म की चाहत रखकर, धोखा ही तुम खाओगे
बिछड़ गए मुझसे तो, केवल रोते ही रह जाओगे
समय रहते इस हसरत को, दिल से मिटाते चलो
रूह को देखने की आदत, तुम रोज बढ़ाते चलो
यही एक आदत तेरे, विचारों को पवित्र बनाएगी
स्वर्ग समान ख़ूबसूरत, तेरी ज़िन्दगी बन जाएगी।